ऑल इण्डिया पत्रकार एकता संघ के प्रदेश महामंत्री ने कहां बाबा साहब डॉ. अंबेडकर जयंती हमारे लिए क्यों जरूरी है!


ऑल इण्डिया पत्रकार एकता संघ के प्रदेश महामंत्री ने कहां बाबा साहब डॉ. अंबेडकर जयंती हमारे लिए क्यों जरूरी है!
छत्तीसगढ़ समाचार
डॉ बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती हमारे लिए क्यों जरूरी है?
भीम जयंती सिर्फ एक महापुरुष की स्मृति नहीं है बल्कि इंसानियत समानता और न्याय के पुनर्जन्म के प्रतीक है बाबा साहब अंबेडकर केवल भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणा है यह एक दिन नहीं हमेशा मनाने चाहिए क्योंकि जयंती में उनके विचारों सोच अभिव्यक्ति सामान्ता व न्याय की जीत होता है डॉ बाबासाहेब अंबेडकर का जन्म ऐसे समय में हुआ जब भारतीय समाज जातिवाद के कठोर बंधनों में जकड़ा हुआ था जन्म के आधार पर इंसान की हैसियत तय होती थी और करोड़ों लोगों को इंसान मानाने से भी इनकार किया जाता था बाबा साहब अंबेडकर ने इस असमानता को न केवल चुनौती दी बल्कि तर्क शिक्षा के माध्यम से समाज में समानता लाने का प्रयास भी किया और उस उचनीच भेदभाव अंधविश्वास जैसे रूढ़ीगत मान्यताओं को बदल कर रख दिया।
भीम जयंती केवल एक वर्ग या समुदाय की जयंती नही है हर उस भारती की जयंती है जो स्वतंत्रता समानता और भाईचारा में विश्वास करता है भारतीय इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं जिनमें एक नाम बाबा साहब अंबेडकर का है वह एक समाज सुधारक विधिवेत्ता चिंतक समाजशास्त्री संविधान निर्माता थे केवल यही तक सीमित नहीं किया जा सकता बाबा साहब अंबेडकर एक विचारधारा है और प्रेरणा है उन्होंने न केवल उस समय के सामाजिक बुराइयों को चुनौती दी बल्कि उन्होंने भारत की नींव रखी जो समानता न्याय और बंधुत्व के सिद्धांतों पर टिका हुआ है बाबा साहब अंबेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल 1891 को एक दलित परिवार में हुआ था उसे समय उस समाज को सबसे निचली सीढ़ी पर चुना जाता था उनमें दलितों को शिक्षा प्राप्त करने मंदिरों में प्रवेश करने सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर प्रतिबंध था यहां तक कि उन्हें सार्वजनिक स्थानों में से पानी पीने का अधिकार तक नहीं था यह सब उन्होंने बचपन से सहन करते आ रहे थे उन्होंने कभी हार नहीं मानी और शिक्षा को अपना हथियार बनाया और विश्व के सर्वोच्च संस्थाओं से पढ़ाई करके साबित कर दिया अभी अवसर मिले तो कोई भी व्यक्ति उन ऊंचाइयों को छू सकता है बाबा साहब अंबेडकर की सबसे बड़ी देन भारत की संविधान है भारतीय संविधान को तैयार करने के लिए उन्हें अध्यक्ष के रूप में चुना गया तब उन्होंने संविधान में ऐसा दस्तावेज तैयार किया जो न केवल लोकतंत्र को मजबूती देता है बल्कि हर नागरिक को समान अधिकार भी प्रदान करता है उन्होंने संविधान में समावेशित सामाजिक न्याय और समान अवसरों की नींव रखी।
आज जो हम अधिकारों की बात करते हैं जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समानता का अधिकार धार्मिक स्वतंत्रता शिक्षा का अधिकार या सब बाबा साहब अंबेडकर की सोच व उनके संघर्षों की देन है बाबा साहब अंबेडकर ने अनेक मोर्चो पर संघर्ष की उन्होंने सामाजिक भेदभाव छुआछूत जातिवाद और असमानता के खिलाफ आवाज उठाई बल्कि मनुस्मृति दहन जैसे कदमों से उन्होंने धार्मिक व सामाजिक नियमों को ललकारा जो दलितों को दोयम दर्जा का नागरिक समझते थे उन्होंने शिक्षा संगठन और संघर्ष का मंत्र देकर दलित और शोषित वर्गों को सशक्त करने की शुरूआत किया बाबा साहब अंबेडकर जी मानते थे सामाजिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है उन्होंने न केवल दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया बल्कि महिलाओं मजदूर किसानों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई बाबासाहेब अंबेडकर का मानना था किसी भी राष्ट्र की असली ताकत उसकी आम जनता होती है अगर आम नागरिक को उनका हक नहीं मिलेगा तो देश की तरक्की संभव नहीं है उन्होंने महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिलाने के लिए भी भरसक प्रयास किया भारतीय श्रम नीति रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया स्थापना औद्योगिक विकास की रूपरेखा यह सब उनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान है डॉ बाबासाहेब अंबेडकर का दृष्टिकोण केवल भारत तक से सीमित नहीं था उन्होंने विश्व के कई हिस्सों का भ्रमण किया और आधुनिक समाज की संरचना को समझा यही कारण है कि जब उन्होंने भारत की संविधान की रूपरेखा तैयार की तब उन्होंने भारत के सांस्कृतिक परंपरा और आधुनिकता का सुंदर समावेश किया उन्होंने यह सुनिश्चित की भारत की संविधान न केवल पश्चिम की नकल मात्र हो न ही अतीत की बेड़ियों मे जकड़ा हुआ हो बाबा साहब अंबेडकर के सोच में धर्म कभी विशेष स्थान था लेकिन उनके लिए धर्म का अर्थ केवल पूजा पाठ नहीं था वह ऐसा मार्ग था जो इंसान को इंसान से जोड़े उसे आत्म सम्मान दे यही कारण है कि उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया जो ऐसा धर्म था जो समानता अहिंसा और करुणा पर आधारित है 1956 में लाखों अनुयायियों के साथ उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना कर ऐतिहासिक कदम उठाया यह केवल धर्म परिवर्तन नहीं था मानसिक व सामाजिक क्रांति की आज जब हम एक लोकतांत्रिक भारत की बात करते हैं तो उन्हें बाबा साहेब की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता उनके सोच उनके सिद्धांत उनके आदर्श आज भी प्रासंगिक है जातिवाद भेदभाव और असमानता जैसे समस्या आज भी हमारे समाज में मौजूद है ऐसे में बाबा साहब का विचार और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है उनका जीवन हमें यह सिखाता है परिस्थिति चाहे कितना भी प्रतिकूल क्यों ना हो अगर हमारी सोच सही है हमारे अंदर दृढ़ संकल्प है तो कोई भी बदलाव ला सकते हैं हर भारती का यह नैतिक फर्ज बनता है वह डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर जी के योगदान को समझें उनके विचारों को अपनाये और अगली पीढ़ी को भी इसकी जानकारी दे बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल केवल एक दिन नहीं है बल्कि यह एक आंदोलन है यह उस संघर्ष और बलिदान को याद करने का दिन है जिसने करोड़ भारतीयों को जीने का अधिकार दिया यह वह दिन है जब हम खुद से यह सवाल करते हैं क्या हम उनके बताएं मार्ग पर चल रहे हैं क्या हमने उनके सपनों का भारत बनाया बाबा साहब अंबेडकर की जयंती धूमधाम से मनाना केवल एक रस्म नहीं होना चाहिए बल्की एक संकल्प होना चाहिए संकल्प उसे भारत को बनाने का जिसमें कोई भेदभाव ना हो कोई उच्च नीच ना हो और हर इंसान को समान अवसर मिले इस दिन हमें अपने बच्चों को उनके जीवन की कहानी सुनाई चाहिए उन्हें बतानी चाहिए कैसे एक साधारण परिवार का बेटा विश्व का सबसे बड़े संविधान निर्माता बने हमें स्कूलों कॉलेज और सामाजिक संस्थाओं मे उनके विचारों पर परिचर्चा करनी चाहिए उनके आदर्श को अपनाना चाहिए।