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सुप्रीम कोर्ट से बेल खारिज, पुनः हाईकोर्ट में अपील से मिली ज़मानत: मशहूर वकील सैयद मशहूद अब्बास की दलीलों ने हाईकोर्ट को किया मजबूर, दो साल पुराने मतीन अहमद हत्याकांड में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चार आरोपियों को दी राहत !

शिव प्रसाद गुप्ता ब्यूरो चीफ आजमगढ़

सुप्रीम कोर्ट से बेल खारिज, पुनःहाईकोर्ट में अपील  से मिली ज़मानत: मशहूर वकील सैयद मशहूद अब्बास की दलीलों ने हाईकोर्ट को किया मजबूर, दो साल पुराने मतीन अहमद हत्याकांड में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चार आरोपियों को दी राहत !

 

 

 

प्रयागराज, 9 मई 2025 आजमगढ़ के मोहम्मदपुर गांव में अक्टूबर 2022 में हुए चर्चित मतीन अहमद हत्याकांड ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं, लेकिन इस बार वजह कुछ और है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस सनसनीखेज मामले में चार अभियुक्तों – नियाज़ अहमद, अब्दुल्ला, नासिर और मुझम्मिल को सशर्त जमानत प्रदान की है, जो पहले सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो चुकी थी।

इस पूरे प्रकरण में सबसे अधिक चर्चा बटोरने वाला नाम है वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद मशहूद अब्बास, जिनकी तर्कशक्ति, कानूनी सूझबूझ और बेहतरीन पैरवी ने कोर्ट को प्रभावित कर दिया।

हत्या या आपसी झगड़ा? अदालत में उठे गंभीर सवाल

हत्या की यह वारदात थाना गंभीरपुर क्षेत्र के अंतर्गत अक्टूबर 2022 को हुई थी, जिसे शुरुआत में आपसी रंजिश का परिणाम बताया गया। प्राथमिकी में आरोप था कि अभियुक्तों ने साजिश के तहत मतीन अहमद की पीट-पीटकर हत्या कर दी। घटना की गूंज न सिर्फ आजमगढ़ में, बल्कि पूर्वांचल की राजनीति और मीडिया में भी सुनाई दी।

मगर हाईकोर्ट की नजर में जब यह मामला पहुंचा तो अधिवक्ता सैयद मशहूद अब्बास ने मेडिकल रिपोर्ट, पोस्टमॉर्टम निष्कर्ष, और गवाहों के बयानों में विरोधाभास को प्रमुखता से रखा।

कोर्ट की टिप्पणी ने बदल दी बहस की दिशा

माननीय न्यायमूर्ति श्री गौतम चौधरी ने कहा:

> “चोटों का होना मात्र यह सिद्ध नहीं करता कि अभियुक्तों ने ही जानबूझकर हत्या की। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में स्पष्ट है कि मृतक की मौत Hemorrhagic Shock से हुई, न कि घातक हथियारों के प्रयोग से।”

इस टिप्पणी ने बचाव पक्ष के पक्ष को मजबूती दी और अभियोजन के तर्क कमजोर पड़े।

सुप्रीम कोर्ट से खारिज, हाईकोर्ट से मंजूर — कैसे हुआ ये संभव?

बेल याचिका पहले सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो चुकी थी, जिससे केस की संवेदनशीलता और जटिलता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। लेकिन मशहूद अब्बास ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जो कानूनी रणनीति अपनाई, उसने पूरी बहस की धारा ही बदल दी।

उन्होंने बताया कि –

अभियुक्तों के खिलाफ कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है

गवाहों के बयान समय-समय पर बदलते रहे हैं

अभियुक्तों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है

न्यायालय की प्रक्रिया से भागने की कोई संभावना नहीं

उनकी पैरवी इस हद तक प्रभावी रही कि अदालत को कहना पड़ा कि:

> “लंबी अवधि की ट्रायल प्रक्रिया में अभियुक्तों को निरंतर हिरासत में रखना न्यायोचित नहीं कहा जा सकता।”

कानूनी हलकों में चर्चा का विषय बनी पैरवी

सैयद मशहूद अब्बास की यह सफलता केवल एक बेल ऑर्डर नहीं, बल्कि एक मिसाल बन चुकी है — कि किस तरह तथ्यों की गहराई, कानून की समझ और शब्दों की शक्ति अदालत को भी सोचने पर मजबूर कर सकती है।

प्रकरण का सार:

केस: मतीन अहमद हत्या कांड

स्थान: मोहम्मदपुर, थाना गंभीरपुर, ज़िला आज़मगढ़

घटना तिथि: अक्टूबर 2022

अभियुक्त: नियाज़ अहमद, अब्दुल्ला, नासिर, मुझम्मिल

धाराएं: IPC 302, 147, 148, 149, 120B

जमानत: इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 9 मई 2025 को सशर्त मंजूर

मुख्य अधिवक्ता: एडवोकेट सैयद मशहूद अब्बास।

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